सूरह अश-शम्स (सूर्य) سُورَة الشمس

सूरह अश-शम्स क़ुरआन की इकतालीसवीं सूरह है, जो मक्का में अवतरित हुई। इसमें 15 आयतें हैं और इसमें सूर्य, उसकी रोशनी और मानवता के प्रति उसकी जिम्मेदारी पर चर्चा की गई है।

अनुवाद: सूरह अश-शम्स (सूरज) سُورَة الشمس

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयावान हैं।

وَالشَّمْسِ وَضُحَاهَا ١

साक्षी है सूर्य और उसकी प्रभा, (१)

وَالْقَمَرِ إِذَا تَلَاهَا ٢

और चन्द्रमा जबकि वह उनके पीछे आए, (२)

وَالنَّهَارِ إِذَا جَلَّاهَا ٣

और दिन, जबकि वह उसे प्रकट कर दे, (३)

وَاللَّيْلِ إِذَا يَغْشَاهَا ٤

और रात, जबकि वह उसको ढाँक ले (४)

وَالسَّمَاءِ وَمَا بَنَاهَا ٥

और आकाश और जैसा कुछ उसे उठाया, (५)

وَالْأَرْضِ وَمَا طَحَاهَا ٦

और धरती और जैसा कुछ उसे बिछाया (६)

وَنَفْسٍ وَمَا سَوَّاهَا ٧

और आत्मा और जैसा कुछ उसे सँवारा (७)

فَأَلْهَمَهَا فُجُورَهَا وَتَقْوَاهَا ٨

फिर उसके दिल में डाली उसकी बुराई और उसकी परहेज़गारी (८)

قَدْ أَفْلَحَ مَنْ زَكَّاهَا ٩

सफल हो गया जिसने उसे विकसित किया (९)

وَقَدْ خَابَ مَنْ دَسَّاهَا ١٠

और असफल हुआ जिसने उसे दबा दिया (१०)

كَذَّبَتْ ثَمُودُ بِطَغْوَاهَا ١١

समूद ने अपनी सरकशी से झुठलाया, (११)

إِذِ انْبَعَثَ أَشْقَاهَا ١٢

जब उनमें का सबसे बड़ा दुर्भाग्यशाली उठ खड़ा हुआ, (१२)

فَقَالَ لَهُمْ رَسُولُ اللَّهِ نَاقَةَ اللَّهِ وَسُقْيَاهَا ١٣

तो अल्लाह के रसूल ने उनसे कहा, "सावधान, अल्लाह की ऊँटनी और उसके पिलाने (की बारी) से।" (१३)

فَكَذَّبُوهُ فَعَقَرُوهَا فَدَمْدَمَ عَلَيْهِمْ رَبُّهُمْ بِذَنْبِهِمْ فَسَوَّاهَا ١٤

किन्तु उन्होंने उसे झुठलाया और उस ऊँटनी की कूचें काट डाली। अन्ततः उनके रब ने उनके गुनाह के कारण उनपर तबाही डाल दी और उन्हें बराबर कर दिया (१४)

وَلَا يَخَافُ عُقْبَاهَا ١٥

और उसे उसके परिणाम का कोई भय नहीं (१५)