सूरह अल-मारिज (आसन) سُورَة المعارج

सूरह अल-मारिज क़ुरआन की सत्तरवीं सूरह है, जो मक्का में अवतरित हुई। इसमें 44 आयतें हैं और इसमें क़यामत के दिन और आस्था के महत्व पर चर्चा की गई है।

अनुवाद: सूरह अल-मआरिज (ऊपर चढ़ने के मार्ग) سُورَة المعارج

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयावान हैं।

سَأَلَ سَائِلٌ بِعَذَابٍ وَاقِعٍ ١

एक माँगनेवाले ने घटित होनेवाली यातना माँगी, (१)

لِلْكَافِرِينَ لَيْسَ لَهُ دَافِعٌ ٢

जो इनकार करनेवालो के लिए होगी, उसे कोई टालनेवाला नहीं, (२)

مِنَ اللَّهِ ذِي الْمَعَارِجِ ٣

वह अल्लाह की ओर से होगी, जो चढ़ाव के सोपानों का स्वामी है (३)

تَعْرُجُ الْمَلَائِكَةُ وَالرُّوحُ إِلَيْهِ فِي يَوْمٍ كَانَ مِقْدَارُهُ خَمْسِينَ أَلْفَ سَنَةٍ ٤

फ़रिश्ते और रूह (जिबरील) उसकी ओर चढ़ते है, उस दिन में जिसकी अवधि पचास हज़ार वर्ष है (४)

فَاصْبِرْ صَبْرًا جَمِيلًا ٥

अतः धैर्य से काम लो, उत्तम धैर्य (५)

إِنَّهُمْ يَرَوْنَهُ بَعِيدًا ٦

वे उसे बहुत दूर देख रहे है, (६)

وَنَرَاهُ قَرِيبًا ٧

किन्तु हम उसे निकट देख रहे है (७)

يَوْمَ تَكُونُ السَّمَاءُ كَالْمُهْلِ ٨

जिस दिन आकाश तेल की तलछट जैसा काला हो जाएगा, (८)

وَتَكُونُ الْجِبَالُ كَالْعِهْنِ ٩

और पर्वत रंग-बिरंगे ऊन के सदृश हो जाएँगे (९)

وَلَا يَسْأَلُ حَمِيمٌ حَمِيمًا ١٠

कोई मित्र किसी मित्र को न पूछेगा, (१०)

يُبَصَّرُونَهُمْ ۚ يَوَدُّ الْمُجْرِمُ لَوْ يَفْتَدِي مِنْ عَذَابِ يَوْمِئِذٍ بِبَنِيهِ ١١

हालाँकि वे एक-दूसरे को दिखाए जाएँगे। अपराधी चाहेगा कि किसी प्रकार वह उस दिन की यातना से छूटने के लिए अपने बेटों, (११)

وَصَاحِبَتِهِ وَأَخِيهِ ١٢

अपनी पत्नी , अपने भाई (१२)

وَفَصِيلَتِهِ الَّتِي تُؤْوِيهِ ١٣

और अपने उस परिवार को जो उसको आश्रय देता है, (१३)

وَمَنْ فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا ثُمَّ يُنْجِيهِ ١٤

और उन सभी लोगों को जो धरती में रहते है, फ़िदया (मुक्ति-प्रतिदान) के रूप में दे डाले फिर वह उसको छुटकारा दिला दे (१४)

كَلَّا ۖ إِنَّهَا لَظَىٰ ١٥

कदापि नहीं! वह लपट मारती हुई आग है, (१५)

نَزَّاعَةً لِلشَّوَىٰ ١٦

जो मांस और त्वचा को चाट जाएगी, (१६)

تَدْعُو مَنْ أَدْبَرَ وَتَوَلَّىٰ ١٧

उस व्यक्ति को बुलाती है जिसने पीठ फेरी और मुँह मोड़ा, (१७)

وَجَمَعَ فَأَوْعَىٰ ١٨

और (धन) एकत्र किया और सैंत कर रखा (१८)

إِنَّ الْإِنْسَانَ خُلِقَ هَلُوعًا ١٩

निस्संदेह मनुष्य अधीर पैदा हुआ है (१९)

إِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ جَزُوعًا ٢٠

जि उसे तकलीफ़ पहुँचती है तो घबरा उठता है, (२०)

وَإِذَا مَسَّهُ الْخَيْرُ مَنُوعًا ٢١

किन्तु जब उसे सम्पन्नता प्राप्त होती ही तो वह कृपणता दिखाता है (२१)

إِلَّا الْمُصَلِّينَ ٢٢

किन्तु नमाज़ अदा करनेवालों की बात और है, (२२)

الَّذِينَ هُمْ عَلَىٰ صَلَاتِهِمْ دَائِمُونَ ٢٣

जो अपनी नमाज़ पर सदैव जमें रहते है, (२३)

وَالَّذِينَ فِي أَمْوَالِهِمْ حَقٌّ مَعْلُومٌ ٢٤

और जिनके मालों में (२४)

لِلسَّائِلِ وَالْمَحْرُومِ ٢٥

माँगनेवालों और वंचित का एक ज्ञात और निश्चित हक़ होता है, (२५)

وَالَّذِينَ يُصَدِّقُونَ بِيَوْمِ الدِّينِ ٢٦

जो बदले के दिन को सत्य मानते है, (२६)

وَالَّذِينَ هُمْ مِنْ عَذَابِ رَبِّهِمْ مُشْفِقُونَ ٢٧

जो अपने रब की यातना से डरते है - (२७)

إِنَّ عَذَابَ رَبِّهِمْ غَيْرُ مَأْمُونٍ ٢٨

उनके रब की यातना है ही ऐसी जिससे निश्चिन्त न रहा जाए - (२८)

وَالَّذِينَ هُمْ لِفُرُوجِهِمْ حَافِظُونَ ٢٩

जो अपने गुप्तांगों की रक्षा करते है। (२९)

إِلَّا عَلَىٰ أَزْوَاجِهِمْ أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُمْ فَإِنَّهُمْ غَيْرُ مَلُومِينَ ٣٠

अपनी पत्नि यों या जो उनकी मिल्क में हो उनके अतिरिक्त दूसरों से तो इस बात पर उनकी कोई भर्त्सना नही। - (३०)

فَمَنِ ابْتَغَىٰ وَرَاءَ ذَٰلِكَ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْعَادُونَ ٣١

किन्तु जिस किसी ने इसके अतिरिक्त कुछ और चाहा तो ऐसे ही लोग सीमा का उल्लंघन करनेवाले है।- (३१)

وَالَّذِينَ هُمْ لِأَمَانَاتِهِمْ وَعَهْدِهِمْ رَاعُونَ ٣٢

जो अपने पास रखी गई अमानतों और अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह करते है, (३२)

وَالَّذِينَ هُمْ بِشَهَادَاتِهِمْ قَائِمُونَ ٣٣

जो अपनी गवाहियों पर क़़ायम रहते है, (३३)

وَالَّذِينَ هُمْ عَلَىٰ صَلَاتِهِمْ يُحَافِظُونَ ٣٤

और जो अपनी नमाज़ की रक्षा करते है (३४)

أُولَٰئِكَ فِي جَنَّاتٍ مُكْرَمُونَ ٣٥

वही लोग जन्नतों में सम्मानपूर्वक रहेंगे (३५)

فَمَالِ الَّذِينَ كَفَرُوا قِبَلَكَ مُهْطِعِينَ ٣٦

फिर उन इनकार करनेवालो को क्या हुआ है कि वे तुम्हारी ओर दौड़े चले आ रहे है? (३६)

عَنِ الْيَمِينِ وَعَنِ الشِّمَالِ عِزِينَ ٣٧

दाएँ और बाएँ से गिरोह के गिरोह (३७)

أَيَطْمَعُ كُلُّ امْرِئٍ مِنْهُمْ أَنْ يُدْخَلَ جَنَّةَ نَعِيمٍ ٣٨

क्या उनमें से प्रत्येक व्यक्ति इसकी लालसा रखता है कि वह अनुकम्पा से परिपूर्ण जन्नत में प्रविष्ट हो? (३८)

كَلَّا ۖ إِنَّا خَلَقْنَاهُمْ مِمَّا يَعْلَمُونَ ٣٩

कदापि नहीं, हमने उन्हें उस चीज़ से पैदा किया है, जिसे वे भली-भाँति जानते है (३९)

فَلَا أُقْسِمُ بِرَبِّ الْمَشَارِقِ وَالْمَغَارِبِ إِنَّا لَقَادِرُونَ ٤٠

अतः कुछ नहीं, मैं क़सम खाता हूँ पूर्वों और पश्चिमों के रब की, हमे इसकी सामर्थ्य प्राप्त है (४०)

عَلَىٰ أَنْ نُبَدِّلَ خَيْرًا مِنْهُمْ وَمَا نَحْنُ بِمَسْبُوقِينَ ٤١

कि उनकी उनसे अच्छे ले आएँ और हम पिछड़ जानेवाले नहीं है (४१)

فَذَرْهُمْ يَخُوضُوا وَيَلْعَبُوا حَتَّىٰ يُلَاقُوا يَوْمَهُمُ الَّذِي يُوعَدُونَ ٤٢

अतः उन्हें छोड़ो कि वे व्यर्थ बातों में पड़े रहें और खेलते रहे, यहाँ तक कि वे अपने उस दिन से मिलें, जिसका उनसे वादा किया जा रहा है, (४२)

يَوْمَ يَخْرُجُونَ مِنَ الْأَجْدَاثِ سِرَاعًا كَأَنَّهُمْ إِلَىٰ نُصُبٍ يُوفِضُونَ ٤٣

जिस दिन वे क़ब्रों से तेज़ी के साथ निकलेंगे जैसे किसी निशान की ओर दौड़े जा रहे है, (४३)

خَاشِعَةً أَبْصَارُهُمْ تَرْهَقُهُمْ ذِلَّةٌ ۚ ذَٰلِكَ الْيَوْمُ الَّذِي كَانُوا يُوعَدُونَ ٤٤

उनकी निगाहें झुकी होंगी, ज़िल्लत उनपर छा रही होगी। यह है वह दिन जिससे वह डराए जाते रहे है (४४)