सूरह अद-धारियात (हवाएँ) سُورَة الذاريات

सूरह अद-धारियात क़ुरआन की इकतालीसवीं सूरह है, जो मक्का में अवतरित हुई। इसमें 60 आयतें हैं और इसमें अल्लाह के आदेशों, क़यामत के दिन और उसके संकेतों के बारे में चर्चा की गई है।

अनुवाद: सूरह अज़-ज़ारियात (हवा चलाने वाले) سُورَة الذاريات

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयावान हैं।

وَالذَّارِيَاتِ ذَرْوًا ١

गवाह है (हवाएँ) जो गर्द-ग़ुबार उड़ाती फिरती है; (१)

فَالْحَامِلَاتِ وِقْرًا ٢

फिर बोझ उठाती है; (२)

فَالْجَارِيَاتِ يُسْرًا ٣

फिर नरमी से चलती है; (३)

فَالْمُقَسِّمَاتِ أَمْرًا ٤

फिर मामले को अलग-अलग करती है; (४)

إِنَّمَا تُوعَدُونَ لَصَادِقٌ ٥

निश्चय ही तुमसे जिस चीज़ का वादा किया जाता है, वह सत्य है; (५)

وَإِنَّ الدِّينَ لَوَاقِعٌ ٦

और (कर्मों का) बदला अवश्य सामने आकर रहेगा (६)

وَالسَّمَاءِ ذَاتِ الْحُبُكِ ٧

गवाह है धारियोंवाला आकाश। (७)

إِنَّكُمْ لَفِي قَوْلٍ مُخْتَلِفٍ ٨

निश्चय ही तुम उस बात में पड़े हुए हो जिनमें कथन भिन्न-भिन्न है (८)

يُؤْفَكُ عَنْهُ مَنْ أُفِكَ ٩

इसमें कोई सरफिरा ही विमुख होता है (९)

قُتِلَ الْخَرَّاصُونَ ١٠

मारे जाएँ अटकल दौड़ानेवाले; (१०)

الَّذِينَ هُمْ فِي غَمْرَةٍ سَاهُونَ ١١

जो ग़फ़लत में पड़े हुए हैं भूले हुए (११)

يَسْأَلُونَ أَيَّانَ يَوْمُ الدِّينِ ١٢

पूछते है, "बदले का दिन कब आएगा?" (१२)

يَوْمَ هُمْ عَلَى النَّارِ يُفْتَنُونَ ١٣

जिस दिन वे आग पर तपाए जाएँगे, (१३)

ذُوقُوا فِتْنَتَكُمْ هَٰذَا الَّذِي كُنْتُمْ بِهِ تَسْتَعْجِلُونَ ١٤

"चखों मज़ा. अपने फ़ितने (उपद्रव) का! यहीं है जिसके लिए तुम जल्दी मचा रहे थे।" (१४)

إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ ١٥

निश्चय ही डर रखनेवाले बाग़ों और स्रोतों में होंगे (१५)

آخِذِينَ مَا آتَاهُمْ رَبُّهُمْ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا قَبْلَ ذَٰلِكَ مُحْسِنِينَ ١٦

जो कुछ उनके रब ने उन्हें दिया, वे उसे ले रहे होंगे। निस्संदेह वे इससे पहले उत्तमकारों में से थे (१६)

كَانُوا قَلِيلًا مِنَ اللَّيْلِ مَا يَهْجَعُونَ ١٧

रातों को थोड़ा ही सोते थे, (१७)

وَبِالْأَسْحَارِ هُمْ يَسْتَغْفِرُونَ ١٨

और वही प्रातः की घड़ियों में क्षमा की प्रार्थना करते थे (१८)

وَفِي أَمْوَالِهِمْ حَقٌّ لِلسَّائِلِ وَالْمَحْرُومِ ١٩

और उनके मालों में माँगनेवाले और धनहीन का हक़ था (१९)

وَفِي الْأَرْضِ آيَاتٌ لِلْمُوقِنِينَ ٢٠

और धरती में विश्वास करनेवालों के लिए बहुत-सी निशानियाँ है, (२०)

وَفِي أَنْفُسِكُمْ ۚ أَفَلَا تُبْصِرُونَ ٢١

और ,स्वयं तुम्हारे अपने आप में भी। तो क्या तुम देखते नहीं? (२१)

وَفِي السَّمَاءِ رِزْقُكُمْ وَمَا تُوعَدُونَ ٢٢

और आकाश मे ही तुम्हारी रोज़ी है और वह चीज़ भी जिसका तुमसे वादा किया जा रहा है (२२)

فَوَرَبِّ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ إِنَّهُ لَحَقٌّ مِثْلَ مَا أَنَّكُمْ تَنْطِقُونَ ٢٣

अतः सौगन्ध है आकाश और धरती के रब की। निश्चय ही वह सत्य बात है ऐसे ही जैसे तुम बोलते हो (२३)

هَلْ أَتَاكَ حَدِيثُ ضَيْفِ إِبْرَاهِيمَ الْمُكْرَمِينَ ٢٤

क्या इबराईम के प्रतिष्ठित अतिथियों का वृतान्त तुम तक पहँचा? (२४)

إِذْ دَخَلُوا عَلَيْهِ فَقَالُوا سَلَامًا ۖ قَالَ سَلَامٌ قَوْمٌ مُنْكَرُونَ ٢٥

जब वे उसके पास आए तो कहा, "सलाम है तुमपर!" उसने भी कहा, "सलाम है आप लोगों पर भी!" (और जी में कहा) "ये तो अपरिचित लोग हैं।" (२५)

فَرَاغَ إِلَىٰ أَهْلِهِ فَجَاءَ بِعِجْلٍ سَمِينٍ ٢٦

फिर वह चुपके से अपने घरवालों के पास गया और एक मोटा-ताज़ा बछड़ा (का भूना हुआ मांस) ले आया (२६)

فَقَرَّبَهُ إِلَيْهِمْ قَالَ أَلَا تَأْكُلُونَ ٢٧

और उसे उनके सामने पेश किया। कहा, "क्या आप खाते नहीं?" (२७)

فَأَوْجَسَ مِنْهُمْ خِيفَةً ۖ قَالُوا لَا تَخَفْ ۖ وَبَشَّرُوهُ بِغُلَامٍ عَلِيمٍ ٢٨

फिर उसने दिल में उनसे डर महसूस किया। उन्होंने कहा, "डरिए नहीं।" और उन्होंने उसे एक ज्ञानवान लड़के की मंगल-सूचना दी (२८)

فَأَقْبَلَتِ امْرَأَتُهُ فِي صَرَّةٍ فَصَكَّتْ وَجْهَهَا وَقَالَتْ عَجُوزٌ عَقِيمٌ ٢٩

इसपर उसकी स्त्री (चकित होकर) आगे बढ़ी और उसने अपना मुँह पीट लिया और कहने लगी, "एक बूढ़ी बाँझ (के यहाँ बच्चा पैदा होगा)!" (२९)

قَالُوا كَذَٰلِكِ قَالَ رَبُّكِ ۖ إِنَّهُ هُوَ الْحَكِيمُ الْعَلِيمُ ٣٠

उन्होंने कहा, "ऐसी ही तेरे रब ने कहा है। निश्चय ही वह बड़ा तत्वदर्शी, ज्ञानवान है।" (३०)

قَالَ فَمَا خَطْبُكُمْ أَيُّهَا الْمُرْسَلُونَ ٣١

उसने कहा, "ऐ (अल्लाह के भेजे हुए) दूतों, तुम्हारे सामने क्या मुहिम है?" (३१)

قَالُوا إِنَّا أُرْسِلْنَا إِلَىٰ قَوْمٍ مُجْرِمِينَ ٣٢

उन्होंने कहा, "हम एक अपराधी क़ौम की ओर भेजे गए है; (३२)

لِنُرْسِلَ عَلَيْهِمْ حِجَارَةً مِنْ طِينٍ ٣٣

"ताकि उनके ऊपर मिट्टी के पत्थर (कंकड़) बरसाएँ, (३३)

مُسَوَّمَةً عِنْدَ رَبِّكَ لِلْمُسْرِفِينَ ٣٤

जो आपके रब के यहाँ सीमा का अतिक्रमण करनेवालों के लिए चिन्हित है।" (३४)

فَأَخْرَجْنَا مَنْ كَانَ فِيهَا مِنَ الْمُؤْمِنِينَ ٣٥

फिर वहाँ जो ईमानवाले थे, उन्हें हमने निकाल लिया; (३५)

فَمَا وَجَدْنَا فِيهَا غَيْرَ بَيْتٍ مِنَ الْمُسْلِمِينَ ٣٦

किन्तु हमने वहाँ एक घर के अतिरिक्त मुसलमानों (आज्ञाकारियों) का और कोई घर न पाया (३६)

وَتَرَكْنَا فِيهَا آيَةً لِلَّذِينَ يَخَافُونَ الْعَذَابَ الْأَلِيمَ ٣٧

इसके पश्चात हमने वहाँ उन लोगों के लिए एक निशानी छोड़ दी, जो दुखद यातना से डरते है (३७)

وَفِي مُوسَىٰ إِذْ أَرْسَلْنَاهُ إِلَىٰ فِرْعَوْنَ بِسُلْطَانٍ مُبِينٍ ٣٨

और मूसा के वृतान्त में भी (निशानी है) जब हमने फ़िरऔन के पास के स्पष्ट प्रमाण के साथ भेजा, (३८)

فَتَوَلَّىٰ بِرُكْنِهِ وَقَالَ سَاحِرٌ أَوْ مَجْنُونٌ ٣٩

किन्तु उसने अपनी शक्ति के कारण मुँह फेर लिया और कहा, "जादूगर है या दीवाना।" (३९)

فَأَخَذْنَاهُ وَجُنُودَهُ فَنَبَذْنَاهُمْ فِي الْيَمِّ وَهُوَ مُلِيمٌ ٤٠

अन्ततः हमने उसे और उसकी सेनाओं को पकड़ लिया और उन्हें गहरे पानी में फेंक दिया, इस दशा में कि वह निन्दनीय था (४०)

وَفِي عَادٍ إِذْ أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمُ الرِّيحَ الْعَقِيمَ ٤١

और आद में भी (तुम्हारे लिए निशानी है) जबकि हमने उनपर अशुभ वायु चला दी (४१)

مَا تَذَرُ مِنْ شَيْءٍ أَتَتْ عَلَيْهِ إِلَّا جَعَلَتْهُ كَالرَّمِيمِ ٤٢

वह जिस चीज़ पर से गुज़री उसे उसने जीर्ण-शीर्ण करके रख दिया (४२)

وَفِي ثَمُودَ إِذْ قِيلَ لَهُمْ تَمَتَّعُوا حَتَّىٰ حِينٍ ٤٣

और समुद्र में भी (तुम्हारे लिए निशानी है) जबकि उनसे कहा गया, "एक समय तक मज़े कर लो!" (४३)

فَعَتَوْا عَنْ أَمْرِ رَبِّهِمْ فَأَخَذَتْهُمُ الصَّاعِقَةُ وَهُمْ يَنْظُرُونَ ٤٤

किन्तु उन्होंने अपने रब के आदेश की अवहेलना की; फिर कड़क ने उन्हें आ लिया और वे देखते रहे (४४)

فَمَا اسْتَطَاعُوا مِنْ قِيَامٍ وَمَا كَانُوا مُنْتَصِرِينَ ٤٥

फिर वे न खड़े ही हो सके और न अपना बचाव ही कर सके (४५)

وَقَوْمَ نُوحٍ مِنْ قَبْلُ ۖ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ ٤٦

और इससे पहले नूह की क़ौम को भी पकड़ा। निश्चय ही वे अवज्ञाकारी लोग थे (४६)

وَالسَّمَاءَ بَنَيْنَاهَا بِأَيْدٍ وَإِنَّا لَمُوسِعُونَ ٤٧

आकाश को हमने अपने हाथ के बल से बनाया और हम बड़ी समाई रखनेवाले है (४७)

وَالْأَرْضَ فَرَشْنَاهَا فَنِعْمَ الْمَاهِدُونَ ٤٨

और धरती को हमने बिछाया, तो हम क्या ही ख़ूब बिछानेवाले है (४८)

وَمِنْ كُلِّ شَيْءٍ خَلَقْنَا زَوْجَيْنِ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ ٤٩

और हमने हर चीज़ के जोड़े बनाए, ताकि तुम ध्यान दो (४९)

فَفِرُّوا إِلَى اللَّهِ ۖ إِنِّي لَكُمْ مِنْهُ نَذِيرٌ مُبِينٌ ٥٠

अतः अल्लाह की ओर दौड़ो। मैं उसकी ओर से तुम्हारे लिए एक प्रत्यक्ष सावधान करनेवाला हूँ (५०)

وَلَا تَجْعَلُوا مَعَ اللَّهِ إِلَٰهًا آخَرَ ۖ إِنِّي لَكُمْ مِنْهُ نَذِيرٌ مُبِينٌ ٥١

और अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य-प्रभु न ठहराओ। मैं उसकी ओर से तुम्हारे लिए एक प्रत्यक्ष सावधान करनेवाला हूँ (५१)

كَذَٰلِكَ مَا أَتَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ مِنْ رَسُولٍ إِلَّا قَالُوا سَاحِرٌ أَوْ مَجْنُونٌ ٥٢

इसी तरह उन लोगों के पास भी, जो उनसे पहले गुज़र चुके है, जो भी रसूल आया तो उन्होंने बस यही कहा, "जादूगर है या दीवाना!" (५२)

أَتَوَاصَوْا بِهِ ۚ بَلْ هُمْ قَوْمٌ طَاغُونَ ٥٣

क्या उन्होंने एक-दूसरे को इसकी वसीयत कर रखी है? नहीं, बल्कि वे है ही सरकश लोग (५३)

فَتَوَلَّ عَنْهُمْ فَمَا أَنْتَ بِمَلُومٍ ٥٤

अतः उनसे मुँह फेर लो अब तुमपर कोई मलामत नहीं (५४)

وَذَكِّرْ فَإِنَّ الذِّكْرَىٰ تَنْفَعُ الْمُؤْمِنِينَ ٥٥

और याद दिलाते रहो, क्योंकि याद दिलाना ईमानवालों को लाभ पहुँचाता है (५५)

وَمَا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَالْإِنْسَ إِلَّا لِيَعْبُدُونِ ٥٦

मैंने तो जिन्नों और मनुष्यों को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी बन्दगी करे (५६)

مَا أُرِيدُ مِنْهُمْ مِنْ رِزْقٍ وَمَا أُرِيدُ أَنْ يُطْعِمُونِ ٥٧

मैं उनसे कोई रोज़ी नहीं चाहता और न यह चाहता हूँ कि वे मुझे खिलाएँ (५७)

إِنَّ اللَّهَ هُوَ الرَّزَّاقُ ذُو الْقُوَّةِ الْمَتِينُ ٥٨

निश्चय ही अल्लाह ही है रोज़ी देनेवाला, शक्तिशाली, दृढ़ (५८)

فَإِنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا ذَنُوبًا مِثْلَ ذَنُوبِ أَصْحَابِهِمْ فَلَا يَسْتَعْجِلُونِ ٥٩

अतः जिन लोगों ने ज़ुल्म किया है उनके लिए एक नियत पैमाना है; जैसा उनके साथियों का नियत पैमाना था। अतः वे मुझसे जल्दी न मचाएँ! (५९)

فَوَيْلٌ لِلَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ يَوْمِهِمُ الَّذِي يُوعَدُونَ ٦٠

अतः इनकार करनेवालों के लिए बड़ी खराबी है, उनके उस दिन के कारण जिसकी उन्हें धमकी दी जा रही है (६०)