सूरह का नाम سُورَة النازعات

सूरह का विवरण

अनुवाद: सूरह अन-नाज़ियात (खींचने वाले) سُورَة النازعات

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयावान हैं।

وَالنَّازِعَاتِ غَرْقًا ١

गवाह है वे (हवाएँ) जो ज़ोर से उखाड़ फैंके, (१)

وَالنَّاشِطَاتِ نَشْطًا ٢

और गवाह है वे (हवाएँ) जो नर्मी के साथ चलें, (२)

وَالسَّابِحَاتِ سَبْحًا ٣

और गवाह है वे जो वायुमंडल में तैरें, (३)

فَالسَّابِقَاتِ سَبْقًا ٤

फिर एक-दूसरे से अग्रसर हों, (४)

فَالْمُدَبِّرَاتِ أَمْرًا ٥

और मामले की तदबीर करें (५)

يَوْمَ تَرْجُفُ الرَّاجِفَةُ ٦

जिस दिन हिला डालेगी हिला डालनेवाले घटना, (६)

تَتْبَعُهَا الرَّادِفَةُ ٧

उसके पीछ घटित होगी दूसरी (घटना) (७)

قُلُوبٌ يَوْمَئِذٍ وَاجِفَةٌ ٨

कितने ही दिल उस दिन काँप रहे होंगे, (८)

أَبْصَارُهَا خَاشِعَةٌ ٩

उनकी निगाहें झुकी होंगी (९)

يَقُولُونَ أَإِنَّا لَمَرْدُودُونَ فِي الْحَافِرَةِ ١٠

वे कहते है, "क्या वास्तव में हम पहली हालत में फिर लौटाए जाएँगे? (१०)

أَإِذَا كُنَّا عِظَامًا نَخِرَةً ١١

क्या जब हम खोखली गलित हड्डियाँ हो चुके होंगे?" (११)

قَالُوا تِلْكَ إِذًا كَرَّةٌ خَاسِرَةٌ ١٢

वे कहते है, "तब तो लौटना बड़े ही घाटे का होगा।" (१२)

فَإِنَّمَا هِيَ زَجْرَةٌ وَاحِدَةٌ ١٣

वह तो बस एक ही झिड़की होगी, (१३)

فَإِذَا هُمْ بِالسَّاهِرَةِ ١٤

फिर क्या देखेंगे कि वे एक समतल मैदान में उपस्थित है (१४)

هَلْ أَتَاكَ حَدِيثُ مُوسَىٰ ١٥

क्या तुम्हें मूसा की ख़बर पहुँची है? (१५)

إِذْ نَادَاهُ رَبُّهُ بِالْوَادِ الْمُقَدَّسِ طُوًى ١٦

जबकि उसके रब ने पवित्र घाटी 'तुवा' में उसे पुकारा था (१६)

اذْهَبْ إِلَىٰ فِرْعَوْنَ إِنَّهُ طَغَىٰ ١٧

कि "फ़िरऔन के पास जाओ, उसने बहुत सिर उठा रखा है (१७)

فَقُلْ هَلْ لَكَ إِلَىٰ أَنْ تَزَكَّىٰ ١٨

"और कहो, क्या तू यह चाहता है कि स्वयं को पाक-साफ़ कर ले, (१८)

وَأَهْدِيَكَ إِلَىٰ رَبِّكَ فَتَخْشَىٰ ١٩

"और मैं तेरे रब की ओर तेरा मार्गदर्शन करूँ कि तु (उससे) डरे?" (१९)

فَأَرَاهُ الْآيَةَ الْكُبْرَىٰ ٢٠

फिर उसने (मूसा ने) उसको बड़ी निशानी दिखाई, (२०)

فَكَذَّبَ وَعَصَىٰ ٢١

किन्तु उसने झुठला दिया और कहा न माना, (२१)

ثُمَّ أَدْبَرَ يَسْعَىٰ ٢٢

फिर सक्रियता दिखाते हुए पलटा, (२२)

فَحَشَرَ فَنَادَىٰ ٢٣

फिर (लोगों को) एकत्र किया और पुकारकर कहा, (२३)

فَقَالَ أَنَا رَبُّكُمُ الْأَعْلَىٰ ٢٤

"मैं तुम्हारा उच्चकोटि का स्वामी हूँ!" (२४)

فَأَخَذَهُ اللَّهُ نَكَالَ الْآخِرَةِ وَالْأُولَىٰ ٢٥

अन्ततः अल्लाह ने उसे आख़िरत और दुनिया की शिक्षाप्रद यातना में पकड़ लिया (२५)

إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَعِبْرَةً لِمَنْ يَخْشَىٰ ٢٦

निस्संदेह इसमें उस व्यक्ति के लिए बड़ी शिक्षा है जो डरे! (२६)

أَأَنْتُمْ أَشَدُّ خَلْقًا أَمِ السَّمَاءُ ۚ بَنَاهَا ٢٧

क्या तुम्हें पैदा करना अधिक कठिन कार्य है या आकाश को? अल्लाह ने उसे बनाया, (२७)

رَفَعَ سَمْكَهَا فَسَوَّاهَا ٢٨

उसकी ऊँचाई को ख़ूब ऊँचा करके उसे ठीक-ठाक किया; (२८)

وَأَغْطَشَ لَيْلَهَا وَأَخْرَجَ ضُحَاهَا ٢٩

और उसकी रात को अन्धकारमय बनाया और उसका दिवस-प्रकाश प्रकट किया (२९)

وَالْأَرْضَ بَعْدَ ذَٰلِكَ دَحَاهَا ٣٠

और धरती को देखो! इसके पश्चात उसे फैलाया; (३०)

أَخْرَجَ مِنْهَا مَاءَهَا وَمَرْعَاهَا ٣١

उसमें से उसका पानी और उसका चारा निकाला (३१)

وَالْجِبَالَ أَرْسَاهَا ٣٢

और पहाड़ो को देखो! उन्हें उस (धरती) में जमा दिया, (३२)

مَتَاعًا لَكُمْ وَلِأَنْعَامِكُمْ ٣٣

तुम्हारे लिए और तुम्हारे मवेशियों के लिए जीवन-सामग्री के रूप में (३३)

فَإِذَا جَاءَتِ الطَّامَّةُ الْكُبْرَىٰ ٣٤

फिर जब वह महाविपदा आएगी, (३४)

يَوْمَ يَتَذَكَّرُ الْإِنْسَانُ مَا سَعَىٰ ٣٥

उस दिन मनुष्य जो कुछ भी उसने प्रयास किया होगा उसे याद करेगा (३५)

وَبُرِّزَتِ الْجَحِيمُ لِمَنْ يَرَىٰ ٣٦

और भड़कती आग (जहन्नम) देखने वालों के लिए खोल दी जाएगी (३६)

فَأَمَّا مَنْ طَغَىٰ ٣٧

तो जिस किसी ने सरकशी की (३७)

وَآثَرَ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا ٣٨

और सांसारिक जीवन को प्राथमिकता दो होगी, (३८)

فَإِنَّ الْجَحِيمَ هِيَ الْمَأْوَىٰ ٣٩

तो निस्संदेह भड़कती आग ही उसका ठिकाना है (३९)

وَأَمَّا مَنْ خَافَ مَقَامَ رَبِّهِ وَنَهَى النَّفْسَ عَنِ الْهَوَىٰ ٤٠

और रहा वह व्यक्ति जिसने अपने रब के सामने खड़े होने का भय रखा और अपने जी को बुरी इच्छा से रोका, (४०)

فَإِنَّ الْجَنَّةَ هِيَ الْمَأْوَىٰ ٤١

तो जन्नत ही उसका ठिकाना है (४१)

يَسْأَلُونَكَ عَنِ السَّاعَةِ أَيَّانَ مُرْسَاهَا ٤٢

वे तुमसे उस घड़ी के विषय में पूछते है कि वह कब आकर ठहरेगी? (४२)

فِيمَ أَنْتَ مِنْ ذِكْرَاهَا ٤٣

उसके बयान करने से तुम्हारा क्या सम्बन्ध? (४३)

إِلَىٰ رَبِّكَ مُنْتَهَاهَا ٤٤

उसकी अन्तिम पहुँच तो तेरे से ही सम्बन्ध रखती है (४४)

إِنَّمَا أَنْتَ مُنْذِرُ مَنْ يَخْشَاهَا ٤٥

तुम तो बस उस व्यक्ति को सावधान करनेवाले हो जो उससे डरे (४५)

كَأَنَّهُمْ يَوْمَ يَرَوْنَهَا لَمْ يَلْبَثُوا إِلَّا عَشِيَّةً أَوْ ضُحَاهَا ٤٦

जिस दिन वे उसे देखेंगे तो (ऐसा लगेगा) मानो वे (दुनिया में) बस एक शाम या उसकी सुबह ही ठहरे है (४६)