सूरह अन-नास (लोग) سُورَة الناس

सूरह अन-नास क़ुरआन की एकसौ चौदहवीं सूरह है, जो मक्का में अवतरित हुई। इसमें 6 आयतें हैं और इसमें अल्लाह से शरण लेने, बुराई और शैतान से बचने की प्रार्थना की गई है।

अनुवाद: सूरह अन-नास (मनुष्य) سُورَة الناس

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयावान हैं।

قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ النَّاسِ ١

कहो, "मैं शरण लेता हूँ मनुष्यों के रब की (१)

مَلِكِ النَّاسِ ٢

मनुष्यों के सम्राट की (२)

إِلَٰهِ النَّاسِ ٣

मनुष्यों के उपास्य की (३)

مِنْ شَرِّ الْوَسْوَاسِ الْخَنَّاسِ ٤

वसवसा डालनेवाले, खिसक जानेवाले की बुराई से (४)

الَّذِي يُوَسْوِسُ فِي صُدُورِ النَّاسِ ٥

जो मनुष्यों के सीनों में वसवसा डालता हैं (५)

مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ ٦

जो जिन्नों में से भी होता हैं और मनुष्यों में से भी (६)