अनुवाद: सूरह या-सिन (या-सिन) سُورَة يس
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयावान हैं।
يس ١
या॰ सीन॰ (१)
وَالْقُرْآنِ الْحَكِيمِ ٢
गवाह है हिकमतवाला क़ुरआन (२)
إِنَّكَ لَمِنَ الْمُرْسَلِينَ ٣
- कि तुम निश्चय ही रसूलों में से हो (३)
عَلَىٰ صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ ٤
एक सीधे मार्ग पर (४)
تَنْزِيلَ الْعَزِيزِ الرَّحِيمِ ٥
- क्या ही ख़ूब है, प्रभुत्वशाली, अत्यन्त दयावाल का इसको अवतरित करना! (५)
لِتُنْذِرَ قَوْمًا مَا أُنْذِرَ آبَاؤُهُمْ فَهُمْ غَافِلُونَ ٦
ताकि तुम ऐसे लोगों को सावधान करो, जिनके बाप-दादा को सावधान नहीं किया गया; इस कारण वे गफ़लत में पड़े हुए है (६)
لَقَدْ حَقَّ الْقَوْلُ عَلَىٰ أَكْثَرِهِمْ فَهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ ٧
उनमें से अधिकतर लोगों पर बात सत्यापित हो चुकी है। अतः वे ईमान नहीं लाएँगे। (७)
إِنَّا جَعَلْنَا فِي أَعْنَاقِهِمْ أَغْلَالًا فَهِيَ إِلَى الْأَذْقَانِ فَهُمْ مُقْمَحُونَ ٨
हमने उनकी गर्दनों में तौक़ डाल दिए है जो उनकी ठोड़ियों से लगे है। अतः उनके सिर ऊपर को उचके हुए है (८)
وَجَعَلْنَا مِنْ بَيْنِ أَيْدِيهِمْ سَدًّا وَمِنْ خَلْفِهِمْ سَدًّا فَأَغْشَيْنَاهُمْ فَهُمْ لَا يُبْصِرُونَ ٩
और हमने उनके आगे एक दीवार खड़ी कर दी है और एक दीवार उनके पीछे भी। इस तरह हमने उन्हें ढाँक दिया है। अतः उन्हें कुछ सुझाई नहीं देता (९)
وَسَوَاءٌ عَلَيْهِمْ أَأَنْذَرْتَهُمْ أَمْ لَمْ تُنْذِرْهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ ١٠
उनके लिए बराबर है तुमने सचेत किया या उन्हें सचेत नहीं किया, वे ईमान नहीं लाएँगे (१०)
إِنَّمَا تُنْذِرُ مَنِ اتَّبَعَ الذِّكْرَ وَخَشِيَ الرَّحْمَٰنَ بِالْغَيْبِ ۖ فَبَشِّرْهُ بِمَغْفِرَةٍ وَأَجْرٍ كَرِيمٍ ١١
तुम तो बस सावधान कर रहे हो। जो कोई अनुस्मृति का अनुसरण करे और परोक्ष में रहते हुए रहमान से डरे, अतः क्षमा और प्रतिष्ठामय बदले की शुभ सूचना दे दो (११)
إِنَّا نَحْنُ نُحْيِي الْمَوْتَىٰ وَنَكْتُبُ مَا قَدَّمُوا وَآثَارَهُمْ ۚ وَكُلَّ شَيْءٍ أَحْصَيْنَاهُ فِي إِمَامٍ مُبِينٍ ١٢
निस्संदेह हम मुर्दों को जीवित करेंगे और हम लिखेंगे जो कुछ उन्होंने आगे के लिए भेजा और उनके चिन्हों को (जो पीछे रहा) । हर चीज़ हमने एक स्पष्ट किताब में गिन रखी है (१२)
وَاضْرِبْ لَهُمْ مَثَلًا أَصْحَابَ الْقَرْيَةِ إِذْ جَاءَهَا الْمُرْسَلُونَ ١٣
उनके लिए बस्तीवालों की एक मिसाल पेश करो, जबकि वहाँ भेजे हुए दूत आए (१३)
إِذْ أَرْسَلْنَا إِلَيْهِمُ اثْنَيْنِ فَكَذَّبُوهُمَا فَعَزَّزْنَا بِثَالِثٍ فَقَالُوا إِنَّا إِلَيْكُمْ مُرْسَلُونَ ١٤
जबकि हमने उनकी ओर दो दूत भेजे, तो उन्होंने झुठला दिया। तब हमने तीसरे के द्वारा शक्ति पहुँचाई, तो उन्होंने कहा, "हम तुम्हारी ओर भेजे गए हैं।" (१४)
قَالُوا مَا أَنْتُمْ إِلَّا بَشَرٌ مِثْلُنَا وَمَا أَنْزَلَ الرَّحْمَٰنُ مِنْ شَيْءٍ إِنْ أَنْتُمْ إِلَّا تَكْذِبُونَ ١٥
वे बोले, "तुम तो बस हमारे ही जैसे मनुष्य हो। रहमान ने तो कोई भी चीज़ अवतरित नहीं की है। तुम केवल झूठ बोलते हो।" (१५)
قَالُوا رَبُّنَا يَعْلَمُ إِنَّا إِلَيْكُمْ لَمُرْسَلُونَ ١٦
उन्होंने कहा, "हमारा रब जानता है कि हम निश्चय ही तुम्हारी ओर भेजे गए है (१६)
وَمَا عَلَيْنَا إِلَّا الْبَلَاغُ الْمُبِينُ ١٧
औऱ हमारी ज़िम्मेदारी तो केवल स्पष्ट रूप से संदेश पहुँचा देने की हैं।" (१७)
قَالُوا إِنَّا تَطَيَّرْنَا بِكُمْ ۖ لَئِنْ لَمْ تَنْتَهُوا لَنَرْجُمَنَّكُمْ وَلَيَمَسَّنَّكُمْ مِنَّا عَذَابٌ أَلِيمٌ ١٨
वे बोले, "हम तो तुम्हें अपशकुन समझते है, यदि तुम बाज न आए तो हम तुम्हें पथराव करके मार डालेंगे और तुम्हें अवश्य हमारी ओर से दुखद यातना पहुँचेगी।" (१८)
قَالُوا طَائِرُكُمْ مَعَكُمْ ۚ أَئِنْ ذُكِّرْتُمْ ۚ بَلْ أَنْتُمْ قَوْمٌ مُسْرِفُونَ ١٩
उन्होंने कहा, "तुम्हारा अवशकुन तो तुम्हारे अपने ही साथ है। क्या यदि तुम्हें याददिहानी कराई जाए (तो यह कोई क्रुद्ध होने की बात है)? नहीं, बल्कि तुम मर्यादाहीन लोग हो।" (१९)
وَجَاءَ مِنْ أَقْصَى الْمَدِينَةِ رَجُلٌ يَسْعَىٰ قَالَ يَا قَوْمِ اتَّبِعُوا الْمُرْسَلِينَ ٢٠
इतने में नगर के दूरवर्ती सिरे से एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया। उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! उनका अनुवर्तन करो, जो भेजे गए है। (२०)
اتَّبِعُوا مَنْ لَا يَسْأَلُكُمْ أَجْرًا وَهُمْ مُهْتَدُونَ ٢١
उसका अनुवर्तन करो जो तुमसे कोई बदला नहीं माँगते और वे सीधे मार्ग पर है (२१)
وَمَا لِيَ لَا أَعْبُدُ الَّذِي فَطَرَنِي وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ ٢٢
"और मुझे क्या हुआ है कि मैं उसकी बन्दगी न करूँ, जिसने मुझे पैदा किया और उसी की ओर तुम्हें लौटकर जाना है? (२२)
أَأَتَّخِذُ مِنْ دُونِهِ آلِهَةً إِنْ يُرِدْنِ الرَّحْمَٰنُ بِضُرٍّ لَا تُغْنِ عَنِّي شَفَاعَتُهُمْ شَيْئًا وَلَا يُنْقِذُونِ ٢٣
"क्या मैं उससे इतर दूसरे उपास्य बना लूँ? यदि रहमान मुझे कोई तकलीफ़ पहुँचाना चाहे तो उनकी सिफ़ारिश मेरे कुछ काम नहीं आ सकती और न वे मुझे छुडा ही सकते है (२३)
إِنِّي إِذًا لَفِي ضَلَالٍ مُبِينٍ ٢٤
"तब तो मैं अवश्य स्पष्ट गुमराही में पड़ जाऊँगा (२४)
إِنِّي آمَنْتُ بِرَبِّكُمْ فَاسْمَعُونِ ٢٥
"मैं तो तुम्हारे रब पर ईमान ले आया, अतः मेरी सुनो!" (२५)
قِيلَ ادْخُلِ الْجَنَّةَ ۖ قَالَ يَا لَيْتَ قَوْمِي يَعْلَمُونَ ٢٦
कहा गया, "प्रवेश करो जन्नत में!" उसने कहा, "ऐ काश! मेरी क़ौम के लोग जानते (२६)
بِمَا غَفَرَ لِي رَبِّي وَجَعَلَنِي مِنَ الْمُكْرَمِينَ ٢٧
कि मेरे रब ने मुझे क्षमा कर दिया और मुझे प्रतिष्ठित लोगों में सम्मिलित कर दिया।" (२७)
وَمَا أَنْزَلْنَا عَلَىٰ قَوْمِهِ مِنْ بَعْدِهِ مِنْ جُنْدٍ مِنَ السَّمَاءِ وَمَا كُنَّا مُنْزِلِينَ ٢٨
उसके पश्चात उसकी क़ौम पर हमने आकाश से कोई सेना नहीं उतारी और हम इस तरह उतारा नहीं करते (२८)
إِنْ كَانَتْ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً فَإِذَا هُمْ خَامِدُونَ ٢٩
वह तो केवल एक प्रचंड चीत्कार थी। तो सहसा क्या देखते है कि वे बुझकर रह गए (२९)
يَا حَسْرَةً عَلَى الْعِبَادِ ۚ مَا يَأْتِيهِمْ مِنْ رَسُولٍ إِلَّا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ ٣٠
ऐ अफ़सोस बन्दो पर! जो रसूल भी उनके पास आया, वे उसका परिहास ही करते रहे (३०)
أَلَمْ يَرَوْا كَمْ أَهْلَكْنَا قَبْلَهُمْ مِنَ الْقُرُونِ أَنَّهُمْ إِلَيْهِمْ لَا يَرْجِعُونَ ٣١
क्या उन्होंने नहीं देखा कि उनसे पहले कितनी ही नस्लों को हमने विनष्ट किया कि वे उनकी ओर पलटकर नहीं आएँगे? (३१)
وَإِنْ كُلٌّ لَمَّا جَمِيعٌ لَدَيْنَا مُحْضَرُونَ ٣٢
और जितने भी है, सबके सब हमारे ही सामने उपस्थित किए जाएँगे (३२)
وَآيَةٌ لَهُمُ الْأَرْضُ الْمَيْتَةُ أَحْيَيْنَاهَا وَأَخْرَجْنَا مِنْهَا حَبًّا فَمِنْهُ يَأْكُلُونَ ٣٣
और एक निशानी उनके लिए मृत भूमि है। हमने उसे जीवित किया और उससे अनाज निकाला, तो वे खाते है (३३)
وَجَعَلْنَا فِيهَا جَنَّاتٍ مِنْ نَخِيلٍ وَأَعْنَابٍ وَفَجَّرْنَا فِيهَا مِنَ الْعُيُونِ ٣٤
और हमने उसमें खजूरों और अंगूरों के बाग लगाए और उसमें स्रोत प्रवाहित किए; (३४)
لِيَأْكُلُوا مِنْ ثَمَرِهِ وَمَا عَمِلَتْهُ أَيْدِيهِمْ ۖ أَفَلَا يَشْكُرُونَ ٣٥
ताकि वे उसके फल खाएँ - हालाँकि यह सब कुछ उनके हाथों का बनाया हुआ नहीं है। - तो क्या वे आभार नहीं प्रकट करते? (३५)
سُبْحَانَ الَّذِي خَلَقَ الْأَزْوَاجَ كُلَّهَا مِمَّا تُنْبِتُ الْأَرْضُ وَمِنْ أَنْفُسِهِمْ وَمِمَّا لَا يَعْلَمُونَ ٣٦
महिमावान है वह जिसने सबके जोड़े पैदा किए धरती जो चीजें उगाती है उनमें से भी और स्वयं उनकी अपनी जाति में से भी और उन चीज़ो में से भी जिनको वे नहीं जानते (३६)
وَآيَةٌ لَهُمُ اللَّيْلُ نَسْلَخُ مِنْهُ النَّهَارَ فَإِذَا هُمْ مُظْلِمُونَ ٣٧
और एक निशानी उनके लिए रात है। हम उसपर से दिन को खींच लेते है। फिर क्या देखते है कि वे अँधेरे में रह गए (३७)
وَالشَّمْسُ تَجْرِي لِمُسْتَقَرٍّ لَهَا ۚ ذَٰلِكَ تَقْدِيرُ الْعَزِيزِ الْعَلِيمِ ٣٨
और सूर्य अपने नियत ठिकाने के लिए चला जा रहा है। यह बाँधा हुआ हिसाब है प्रभुत्वशाली, ज्ञानवान का (३८)
وَالْقَمَرَ قَدَّرْنَاهُ مَنَازِلَ حَتَّىٰ عَادَ كَالْعُرْجُونِ الْقَدِيمِ ٣٩
और रहा चन्द्रमा, तो उसकी नियति हमने मंज़िलों के क्रम में रखी, यहाँ तक कि वह फिर खजूर की पूरानी टेढ़ी टहनी के सदृश हो जाता है (३९)
لَا الشَّمْسُ يَنْبَغِي لَهَا أَنْ تُدْرِكَ الْقَمَرَ وَلَا اللَّيْلُ سَابِقُ النَّهَارِ ۚ وَكُلٌّ فِي فَلَكٍ يَسْبَحُونَ ٤٠
न सूर्य ही से हो सकता है कि चाँद को जा पकड़े और न रात दिन से आगे बढ़ सकती है। सब एक-एक कक्षा में तैर रहे हैं (४०)
وَآيَةٌ لَهُمْ أَنَّا حَمَلْنَا ذُرِّيَّتَهُمْ فِي الْفُلْكِ الْمَشْحُونِ ٤١
और एक निशानी उनके लिए यह है कि हमने उनके अनुवर्तियों को भरी हुई नौका में सवार किया (४१)
وَخَلَقْنَا لَهُمْ مِنْ مِثْلِهِ مَا يَرْكَبُونَ ٤٢
और उनके लिए उसी के सदृश और भी ऐसी चीज़े पैदा की, जिनपर वे सवार होते है (४२)
وَإِنْ نَشَأْ نُغْرِقْهُمْ فَلَا صَرِيخَ لَهُمْ وَلَا هُمْ يُنْقَذُونَ ٤٣
और यदि हम चाहें तो उन्हें डूबो दें। फिर न तो उनकी कोई चीख-पुकार हो और न उन्हें बचाया जा सके (४३)
إِلَّا رَحْمَةً مِنَّا وَمَتَاعًا إِلَىٰ حِينٍ ٤٤
यह तो बस हमारी दयालुता और एक नियत समय तक की सुख-सामग्री है (४४)
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اتَّقُوا مَا بَيْنَ أَيْدِيكُمْ وَمَا خَلْفَكُمْ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ ٤٥
और जब उनसे कहा जाता है कि उस चीज़ का डर रखो, जो तुम्हारे आगे है और जो तुम्हारे पीछे है, ताकि तुमपर दया कि जाए! (तो चुप्पी साझ लेते है) (४५)
وَمَا تَأْتِيهِمْ مِنْ آيَةٍ مِنْ آيَاتِ رَبِّهِمْ إِلَّا كَانُوا عَنْهَا مُعْرِضِينَ ٤٦
उनके पास उनके रब की आयतों में से जो आयत भी आती है, वे उससे कतराते ही है (४६)
وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ أَنْفِقُوا مِمَّا رَزَقَكُمُ اللَّهُ قَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلَّذِينَ آمَنُوا أَنُطْعِمُ مَنْ لَوْ يَشَاءُ اللَّهُ أَطْعَمَهُ إِنْ أَنْتُمْ إِلَّا فِي ضَلَالٍ مُبِينٍ ٤٧
और जब उनसे कहा जाता है कि "अल्लाह ने जो कुछ रोज़ी तुम्हें दी है उनमें से ख़र्च करो।" तो जिन लोगों ने इनकार किया है, वे उन लोगों से, जो ईमान लाए है, कहते है, "क्या हम उसको खाना खिलाएँ जिसे .दि अल्लाह चाहता तो स्वयं खिला देता? तुम तो बस खुली गुमराही में पड़े हो।" (४७)
وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا الْوَعْدُ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ ٤٨
और वे कहते है कि "यह वादा कब पूरा होगा, यदि तुम सच्चे हो?" (४८)
مَا يَنْظُرُونَ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً تَأْخُذُهُمْ وَهُمْ يَخِصِّمُونَ ٤٩
वे तो बस एक प्रचंड चीत्कार की प्रतीक्षा में है, जो उन्हें आ पकड़ेगी, जबकि वे झगड़ते होंगे (४९)
فَلَا يَسْتَطِيعُونَ تَوْصِيَةً وَلَا إِلَىٰ أَهْلِهِمْ يَرْجِعُونَ ٥٠
फिर न तो वे कोई वसीयत कर पाएँगे और न अपने घरवालों की ओर लौट ही सकेंगे (५०)
وَنُفِخَ فِي الصُّورِ فَإِذَا هُمْ مِنَ الْأَجْدَاثِ إِلَىٰ رَبِّهِمْ يَنْسِلُونَ ٥١
और नरसिंघा में फूँक मारी जाएगी। फिर क्या देखेंगे कि वे क़ब्रों से निकलकर अपने रब की ओर चल पड़े हैं (५१)
قَالُوا يَا وَيْلَنَا مَنْ بَعَثَنَا مِنْ مَرْقَدِنَا ۜ ۗ هَٰذَا مَا وَعَدَ الرَّحْمَٰنُ وَصَدَقَ الْمُرْسَلُونَ ٥٢
कहेंगे, "ऐ अफ़सोस हम पर! किसने हमें सोते से जगा दिया? यह वही चीज़ है जिसका रहमान ने वादा किया था और रसूलों ने सच कहा था।" (५२)
إِنْ كَانَتْ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً فَإِذَا هُمْ جَمِيعٌ لَدَيْنَا مُحْضَرُونَ ٥٣
बस एक ज़ोर की चिंघाड़ होगी। फिर क्या देखेंगे कि वे सबके-सब हमारे सामने उपस्थित कर दिए गए (५३)
فَالْيَوْمَ لَا تُظْلَمُ نَفْسٌ شَيْئًا وَلَا تُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ ٥٤
अब आज किसी जीव पर कुछ भी ज़ुल्म न होगा और तुम्हें बदले में वही मिलेगा जो कुछ तुम करते रहे हो (५४)
إِنَّ أَصْحَابَ الْجَنَّةِ الْيَوْمَ فِي شُغُلٍ فَاكِهُونَ ٥٥
निश्चय ही जन्नतवाले आज किसी न किसी काम नें व्यस्त आनन्द ले रहे है (५५)
هُمْ وَأَزْوَاجُهُمْ فِي ظِلَالٍ عَلَى الْأَرَائِكِ مُتَّكِئُونَ ٥٦
वे और उनकी पत्नियों छायों में मसहरियों पर तकिया लगाए हुए है, (५६)
لَهُمْ فِيهَا فَاكِهَةٌ وَلَهُمْ مَا يَدَّعُونَ ٥٧
उनके लिए वहाँ मेवे है। औऱ उनके लिए वह सब कुछ मौजूद है, जिसकी वे माँग करें (५७)
سَلَامٌ قَوْلًا مِنْ رَبٍّ رَحِيمٍ ٥٨
(उनपर) सलाम है, दयामय रब का उच्चारित किया हुआ (५८)
وَامْتَازُوا الْيَوْمَ أَيُّهَا الْمُجْرِمُونَ ٥٩
"और ऐ अपराधियों! आज तुम छँटकर अलग हो जाओ (५९)
أَلَمْ أَعْهَدْ إِلَيْكُمْ يَا بَنِي آدَمَ أَنْ لَا تَعْبُدُوا الشَّيْطَانَ ۖ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُبِينٌ ٦٠
क्या मैंने तुम्हें ताकीद नहीं की थी, ऐ आदम के बेटो! कि शैतान की बन्दगी न करे। वास्तव में वह तुम्हारा खुला शत्रु है (६०)
وَأَنِ اعْبُدُونِي ۚ هَٰذَا صِرَاطٌ مُسْتَقِيمٌ ٦١
और यह कि मेरी बन्दगी करो? यही सीधा मार्ग है (६१)
وَلَقَدْ أَضَلَّ مِنْكُمْ جِبِلًّا كَثِيرًا ۖ أَفَلَمْ تَكُونُوا تَعْقِلُونَ ٦٢
उसने तो तुममें से बहुत-से गिरोहों को पथभ्रष्ट कर दिया। तो क्या तुम बुद्धि नहीं रखते थे? (६२)
هَٰذِهِ جَهَنَّمُ الَّتِي كُنْتُمْ تُوعَدُونَ ٦٣
यह वही जहन्नम है जिसकी तुम्हें धमकी दी जाती रही है (६३)
اصْلَوْهَا الْيَوْمَ بِمَا كُنْتُمْ تَكْفُرُونَ ٦٤
जो इनकार तुम करते रहे हो, उसके बदले में आज इसमें प्रविष्ट हो जाओ।" (६४)
الْيَوْمَ نَخْتِمُ عَلَىٰ أَفْوَاهِهِمْ وَتُكَلِّمُنَا أَيْدِيهِمْ وَتَشْهَدُ أَرْجُلُهُمْ بِمَا كَانُوا يَكْسِبُونَ ٦٥
आज हम उनके मुँह पर मुहर लगा देंगे और उनके हाथ हमसे बोलेंगे और जो कुछ वे कमाते रहे है, उनके पाँव उसकी गवाही देंगे (६५)
وَلَوْ نَشَاءُ لَطَمَسْنَا عَلَىٰ أَعْيُنِهِمْ فَاسْتَبَقُوا الصِّرَاطَ فَأَنَّىٰ يُبْصِرُونَ ٦٦
यदि हम चाहें तो उनकी आँखें मेट दें क्योंकि वे (अपने रूढ़) मार्ग की और लपके हुए है। फिर उन्हें सुझाई कहाँ से देगा? (६६)
وَلَوْ نَشَاءُ لَمَسَخْنَاهُمْ عَلَىٰ مَكَانَتِهِمْ فَمَا اسْتَطَاعُوا مُضِيًّا وَلَا يَرْجِعُونَ ٦٧
यदि हम चाहें तो उनकी जगह पर ही उनके रूप बिगाड़कर रख दें क्योंकि वे सत्य की ओर न चल सके और वे (गुमराही से) बाज़ नहीं आते। (६७)
وَمَنْ نُعَمِّرْهُ نُنَكِّسْهُ فِي الْخَلْقِ ۖ أَفَلَا يَعْقِلُونَ ٦٨
जिसको हम दीर्धायु देते है, उसको उसकी संरचना में उल्टा फेर देते है। तो क्या वे बुद्धि से काम नहीं लेते? (६८)
وَمَا عَلَّمْنَاهُ الشِّعْرَ وَمَا يَنْبَغِي لَهُ ۚ إِنْ هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ وَقُرْآنٌ مُبِينٌ ٦٩
हमने उस (नबी) को कविता नहीं सिखाई और न वह उसके लिए शोभनीय है। वह तो केवल अनुस्मृति और स्पष्ट क़ुरआन है; (६९)
لِيُنْذِرَ مَنْ كَانَ حَيًّا وَيَحِقَّ الْقَوْلُ عَلَى الْكَافِرِينَ ٧٠
ताकि वह उसे सचेत कर दे जो जीवन्त हो और इनकार करनेवालों पर (यातना की) बात स्थापित हो जाए (७०)
أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّا خَلَقْنَا لَهُمْ مِمَّا عَمِلَتْ أَيْدِينَا أَنْعَامًا فَهُمْ لَهَا مَالِكُونَ ٧١
क्या उन्होंने देखा नहीं कि हमने उनके लिए अपने हाथों की बनाई हुई चीज़ों में से चौपाए पैदा किए और अब वे उनके मालिक है? (७१)
وَذَلَّلْنَاهَا لَهُمْ فَمِنْهَا رَكُوبُهُمْ وَمِنْهَا يَأْكُلُونَ ٧٢
और उन्हें उनके बस में कर दिया कि उनमें से कुछ तो उनकी सवारियाँ हैं और उनमें से कुछ को खाते है। (७२)
وَلَهُمْ فِيهَا مَنَافِعُ وَمَشَارِبُ ۖ أَفَلَا يَشْكُرُونَ ٧٣
और उनके लिए उनमें कितने ही लाभ है और पेय भी है। तो क्या वे कृतज्ञता नहीं दिखलाते? (७३)
وَاتَّخَذُوا مِنْ دُونِ اللَّهِ آلِهَةً لَعَلَّهُمْ يُنْصَرُونَ ٧٤
उन्होंने अल्लाह से इतर कितने ही उपास्य बना लिए है कि शायद उन्हें मदद पहुँचे। (७४)
لَا يَسْتَطِيعُونَ نَصْرَهُمْ وَهُمْ لَهُمْ جُنْدٌ مُحْضَرُونَ ٧٥
वे उनकी सहायता करने की सामर्थ्य नहीं रखते, हालाँकि वे (बहुदेववादियों की अपनी स्पष्ट में) उनके लिए उपस्थित सेनाएँ हैं (७५)
فَلَا يَحْزُنْكَ قَوْلُهُمْ ۘ إِنَّا نَعْلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعْلِنُونَ ٧٦
अतः उनकी बात तुम्हें शोकाकुल न करे। हम जानते है जो कुछ वे छिपाते और जो कुछ व्यक्त करते है (७६)
أَوَلَمْ يَرَ الْإِنْسَانُ أَنَّا خَلَقْنَاهُ مِنْ نُطْفَةٍ فَإِذَا هُوَ خَصِيمٌ مُبِينٌ ٧٧
क्या (इनकार करनेवाले) मनुष्य को नहीं देखा कि हमने उसे वीर्य से पैदा किया? फिर क्या देखते है कि वह प्रत्क्षय विरोधी झगड़ालू बन गया (७७)
وَضَرَبَ لَنَا مَثَلًا وَنَسِيَ خَلْقَهُ ۖ قَالَ مَنْ يُحْيِي الْعِظَامَ وَهِيَ رَمِيمٌ ٧٨
और उसने हमपर फबती कसी और अपनी पैदाइश को भूल गया। कहता है, "कौन हड्डियों में जान डालेगा, जबकि वे जीर्ण-शीर्ण हो चुकी होंगी?" (७८)
قُلْ يُحْيِيهَا الَّذِي أَنْشَأَهَا أَوَّلَ مَرَّةٍ ۖ وَهُوَ بِكُلِّ خَلْقٍ عَلِيمٌ ٧٩
कह दो, "उनमें वही जाल डालेगा जिसने उनको पहली बार पैदा किया। वह तो प्रत्येक संसृति को भली-भाँति जानता है (७९)
الَّذِي جَعَلَ لَكُمْ مِنَ الشَّجَرِ الْأَخْضَرِ نَارًا فَإِذَا أَنْتُمْ مِنْهُ تُوقِدُونَ ٨٠
वही है जिसने तुम्हारे लिए हरे-भरे वृक्ष से आग पैदा कर दी। तो लगे हो तुम उससे जलाने।" (८०)
أَوَلَيْسَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِقَادِرٍ عَلَىٰ أَنْ يَخْلُقَ مِثْلَهُمْ ۚ بَلَىٰ وَهُوَ الْخَلَّاقُ الْعَلِيمُ ٨١
क्या जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया उसे इसकी सामर्थ्य नहीं कि उन जैसों को पैदा कर दे? क्यों नहीं, जबकि वह महान स्रष्टा , अत्यन्त ज्ञानवान है (८१)
إِنَّمَا أَمْرُهُ إِذَا أَرَادَ شَيْئًا أَنْ يَقُولَ لَهُ كُنْ فَيَكُونُ ٨٢
उसका मामला तो बस यह है कि जब वह किसी चीज़ (के पैदा करने) का इरादा करता है तो उससे कहता है, "हो जा!" और वह हो जाती है (८२)
فَسُبْحَانَ الَّذِي بِيَدِهِ مَلَكُوتُ كُلِّ شَيْءٍ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ ٨٣
अतः महिमा है उसकी, जिसके हाथ में हर चीज़ का पूरा अधिकार है। और उसी की ओर तुम लौटकर जाओगे (८३)